104% टैरिफ और अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर का विस्फोट: क्या ये ग्लोबलाइज़ेशन और कैपिटलिज़्म का अंत है?

Updated on 2025-04-10T11:33:36+05:30

104% टैरिफ और अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर का विस्फोट: क्या ये ग्लोबलाइज़ेशन और कैपिटलिज़्म का अंत है?

104% टैरिफ और अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर का विस्फोट: क्या ये ग्लोबलाइज़ेशन और कैपिटलिज़्म का अंत है?

आज, 9 अप्रैल 2025 की रात से अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर एक नए और बेहद खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है। अमेरिका ने चीनी आयात पर 104% का चौंका देने वाला टैरिफ लगा दिया है। यह कदम उस समय आया है जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन को चेतावनी दी थी कि वह अपनी 34% रिटेलिएटरी टैरिफ को हटाए, लेकिन बीजिंग ने साफ इंकार कर दिया और दो टूक कहा – "हम अंत तक लड़ेंगे।"

क्या अब पूंजीवाद (Capitalism) की रीढ़ टूटने वाली है?

ये सवाल अब सिर्फ विश्लेषकों तक सीमित नहीं है। दुनिया भर के बाज़ारों और आम लोगों के बीच चिंता की लहर दौड़ गई है — क्या यह ग्लोबल फ्री ट्रेड सिस्टम का अंत है?
क्या अब वो दौर आ चुका है, जहां देश खुद को वैश्विक व्यापार से काट कर आत्मनिर्भरता (economic nationalism) की ओर लौटेंगे

104% टैरिफ – इतिहास की सबसे बड़ी व्यापारिक दीवार?

इस ताज़ा निर्णय से पहले ही अमेरिका ने पिछले हफ्ते 20% टैरिफ फेंटानिल से जुड़े उत्पादों पर और 34% ‘reciprocal’ टैरिफ लगा दिया था। इन सबको मिलाकर टोटल टैरिफ अब 104% हो गया है — जो शायद अब तक का सबसे बड़ा ट्रेड पेनाल्टी है किसी एक देश के खिलाफ।

व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव करोलिन लेविट ने कहा,

> "जब अमेरिका को घूंसा मारा जाता है, तो वो और ज़ोर से वापस घूंसा मारता है।"


चीन का जवाब – “Unilateral Bullying” और नए जवाबी कदम की चेतावनी

चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने अमेरिका के इस कदम को "एकतरफा गुंडागर्दी (Unilateral Bullying)" बताया है। बीजिंग ने कहा है कि वह जल्द ही और अधिक कड़े जवाबी कदम उठाएगा।

इस टकराव से न सिर्फ अमेरिका-चीन रिश्ते बिगड़ेंगे, बल्कि पूरी वैश्विक सप्लाई चेन पर गहरा असर पड़ेगा।

बाजारों में हलचल, महंगाई की आहट

इस फैसले के तुरंत बाद ही अमेरिकी शेयर बाजारों में गिरावट देखी गई। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल्स, खिलौने और दवाइयां जैसी जरूरी चीजें महंगी हो जाएंगी।

यानी एक तरह से इस ट्रेड वॉर का सीधा नुकसान आम जनता को झेलना पड़ेगा — चाहे वो अमेरिका हो या भारत या यूरोप।

क्या ये Globalization का अंत है?

ये घटनाएं सिर्फ दो देशों के बीच का मामला नहीं हैं। इससे पूरी ग्लोबल ट्रेड सिस्टम पर खतरा मंडरा रहा है।
अब देश अपनी आर्थिक सीमाएं कसने की कोशिश कर रहे हैं — Open market, free trade और multinational capitalism पर बुनियादी सवाल खड़े हो गए हैं।

पूंजीवाद बनाम राष्ट्रवाद?

पूंजीवाद (Capitalism) की पूरी नींव खुले बाज़ारों, बॉर्डरलेस ट्रेड, और विकास के लिए वैश्विक सहयोग पर टिकी है। लेकिन इस तरह के कदम बताते हैं कि अब देश राष्ट्रवादी आर्थिक नीतियों (Economic Nationalism) की तरफ झुक रहे हैं।

सवाल अब ये है –
क्या दुनिया फिर से टुकड़ों में बंटे बाजारों की ओर लौट रही है?
क्या यह पूंजीवाद के खुले मॉडल का पतन है या उसका नया रूप?

104% टैरिफ केवल एक आंकड़ा नहीं है — यह विश्व अर्थव्यवस्था में दरार की चेतावनी है।
जहां एक ओर यह अमेरिका की घरेलू राजनीति का हथियार बन गया है, वहीं दूसरी ओर यह संकेत भी है कि नई विश्व व्यवस्था बन रही है, जहां ट्रेड, पूंजी और नीतियों का पुराना ढांचा बदल रहा है।

शायद यह ग्लोबलाइज़ेशन का अंत नहीं, लेकिन एक नई शुरुआत की तकलीफदेह दस्तक ज़रूर है।