पालघर की पीड़ा: 15 घंटे तक नहीं मिली एम्बुलेंस, नवजात की मौत और पिता को शव ले जाना पड़ा प्लास्टिक बैग में
पालघर की पीड़ा: 15 घंटे तक नहीं मिली एम्बुलेंस, नवजात की मौत और पिता को शव ले जाना पड़ा प्लास्टिक बैग में
26 वर्षीय महिला जब प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी, तब उसके परिवार ने घंटों तक सरकारी एम्बुलेंस सेवा से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अंततः, परिजनों को मजबूरी में निजी वाहन का सहारा लेना पड़ा और अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने बताया कि बच्चा गर्भ में ही दम तोड़ चुका है। हालांकि महिला की सर्जरी कर जान बचा ली गई।
लेकिन इस त्रासदी का अंत यहीं नहीं हुआ। अस्पताल प्रशासन ने बच्चे के शव को घर ले जाने के लिए कोई सहायता नहीं दी। ऐसे में मृत नवजात को प्लास्टिक के बैग में रखकर उसके पिता को करीब 80 किलोमीटर तक पब्लिक बस में सफर करना पड़ा।
इस घटना ने तब और भयावह रूप ले लिया जब पिता ने आरोप लगाया कि उसने एम्बुलेंस की लापरवाही पर सवाल उठाया तो पुलिस ने उसे पीट दिया। उसकी तस्वीरें सामने आई हैं जिसमें उसके शरीर पर चोट के निशान साफ देखे जा सकते हैं। पीड़ित का कहना है कि उसे धमकाया गया और चुप रहने को कहा गया।
यह घटना न केवल ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की भयावह स्थिति को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि गरीब और हाशिए पर खड़े समुदायों को किस तरह अनदेखा किया जाता है। एक पिता जिसने अपना बच्चा खोया, उसे न्याय की बजाय हिंसा मिली — यह हमारे सिस्टम की असंवेदनशीलता का साक्षात उदाहरण है। ऐसी घटनाएं हमारे समाज और तंत्र को एक बार फिर सोचने पर मजबूर करती हैं कि आखिर सबसे ज़रूरी इंसानियत क्यों गायब हो रही है?