क्या चिराग और मांझी ही दलित राजनीति के चेहरे? आंकड़ों में छिपी असली तस्वीर

Updated on 2025-07-11T15:48:40+05:30

क्या चिराग और मांझी ही दलित राजनीति के चेहरे? आंकड़ों में छिपी असली तस्वीर

क्या चिराग और मांझी ही दलित राजनीति के चेहरे? आंकड़ों में छिपी असली तस्वीर

बिहार की सियासत में दलित वोट बैंक हमेशा से बेहद अहम रहा है। 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले इस पर कब्जा जमाने की होड़ तेज हो गई है। चिराग पासवान और जीतनराम मांझी को अक्सर दलित राजनीति के बड़े चेहरे के तौर पर देखा जाता है, लेकिन आंकड़ों की नजर से देखें तो तस्वीर कुछ अलग नजर आती है।

चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और जीतनराम मांझी की हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) दलितों के बीच अपनी पकड़ बनाने में जुटी हैं। दोनों नेताओं का दावा है कि राज्य के दलितों का बड़ा समर्थन उनके साथ है। लेकिन हाल के चुनावी नतीजे बताते हैं कि दलित वोटों का बंटवारा कई हिस्सों में है।

बिहार में दलितों की आबादी लगभग 16% है, लेकिन इस वर्ग के वोट एकतरफा किसी एक नेता या पार्टी के साथ नहीं जाते। जेडीयू, बीजेपी, आरजेडी और कांग्रेस समेत लगभग हर बड़ी पार्टी के साथ दलित समुदाय का एक बड़ा हिस्सा जुड़ा हुआ है। जीतनराम मांझी की पार्टी का प्रभाव सीमित इलाकों में ही दिखता है, जबकि चिराग पासवान के प्रभाव को भी लोजपा में हुई टूट और हालिया प्रदर्शन ने थोड़ा कमजोर किया है।

इसलिए यह कहना मुश्किल है कि दलित वोट केवल इन दो नेताओं के इर्द-गिर्द सिमटे हैं। असल लड़ाई इन वोटों को साधने के लिए तमाम पार्टियों के बीच है और इसका फैसला आगामी चुनाव में दलित समाज की प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगा।