क्रिएटिनिन बढ़े तो खतरा क्यों बढ़ जाता है…

Updated on 2025-11-25T15:32:51+05:30

क्रिएटिनिन बढ़े तो खतरा क्यों बढ़ जाता है…

क्रिएटिनिन बढ़े तो खतरा क्यों बढ़ जाता है…

क्रिएटिनिन हमारे शरीर का एक ऐसा केमिकल है जो मांसपेशियों से बनता है और किडनी इसे फिल्टर करके बाहर निकालती है। लेकिन जब यही स्तर बढ़ने लगता है, तो शरीर में ज़हर जैसा जमाव शुरू हो जाता है। समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो हालत इतनी बिगड़ सकती है कि मरीज को डायलिसिस तक की जरूरत पड़ जाए।

किडनी हर मिनट खून को साफ करती है, लेकिन जब वह कमजोर होने लगती है तो क्रिएटिनिन बाहर नहीं निकल पाता। यही वजह है कि क्रिएटिनिन बढ़ना किडनी फेल होने का शुरुआती और सबसे महत्वपूर्ण संकेत माना जाता है। भारत में क्रॉनिक किडनी डिजीज तेजी से बढ़ रही है और बड़ी संख्या में मरीज तब अस्पताल पहुंचते हैं जब उनकी किडनी पहले ही 70–80% कमजोर हो चुकी होती है।

क्रिएटिनिन बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं—जैसे अनियंत्रित डायबिटीज, हाई बीपी, बार-बार पेनकिलर का सेवन, जंक फूड और कम पानी पीने की आदत। कई बार इन्फेक्शन या जहर (टॉक्सिन) के चलते भी किडनी पर अचानक दबाव बढ़ जाता है। शुरुआती लक्षण बहुत हल्के होते हैं, थकान, पैरों में सूजन, भूख कम लगना, पेशाब में बदलाव या सुबह-सुबह चेहरे पर सूजन। लोग अक्सर इन संकेतों को नजरअंदाज कर देते हैं और बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती जाती है।

जब क्रिएटिनिन का स्तर 1.2 से ऊपर जाने लगता है तो डॉक्टर जांच की सलाह देते हैं। अगर यह लगातार बढ़ता रहे, तो किडनी की फिल्टरिंग क्षमता कम होने लगती है। कुछ मामलों में किडनी पूरी तरह खराब होने लगती है, और ऐसे में शरीर में टॉक्सिन जमा होते रहते हैं। इस स्थिति में डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट ही विकल्प बचता है। इसलिए किसी भी व्यक्ति को अगर बार-बार सूजन, कमजोरी, उलझन, या पेशाब की मात्रा में कमी दिखे तो तुरंत जांच जरूरी है।

किडनी को बचाने का सबसे आसान तरीका है, संतुलित पानी पीना, ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर नियंत्रित रखना, नमक कम करना, पेनकिलर का ज्यादा इस्तेमाल न करना और समय-समय पर किडनी फंक्शन टेस्ट कराना। क्रिएटिनिन बढ़ना अपने-आप में कोई बीमारी नहीं, बल्कि किडनी में हो रहे नुकसान का चेतावनी संकेत है। इसे समय पर समझ लिया जाए, तो डायलिसिस की नौबत आने से पहले ही इलाज शुरू किया जा सकता है।

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