ढाका की गलियों में डर का साया हिंदू समुदाय क्यों सहमा
ढाका की गलियों में डर का साया हिंदू समुदाय क्यों सहमा
बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शनों और सियासी उथल-पुथल के बीच हिंदू समुदाय खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है। हाल के दिनों में देश के अलग-अलग हिस्सों से लिंचिंग, तोड़फोड़ और धमकियों की खबरें सामने आई हैं। ढाका में आजतक की ग्राउंड रिपोर्ट बताती है कि हालात ऐसे हैं कि कई हिंदू परिवार रात में घर से बाहर निकलने से डर रहे हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार, राजनीतिक तनाव बढ़ने के साथ भीड़ की हिंसा भी तेज हुई है। खास तौर पर उन इलाकों में डर ज्यादा है, जहां हिंदू आबादी सीमित संख्या में रहती है। दुकानों को निशाना बनाया गया, मंदिरों के आसपास सुरक्षा बढ़ाई गई, लेकिन लोगों का कहना है कि डर अब भी कम नहीं हुआ है। कई परिवारों ने बच्चों को स्कूल भेजना तक बंद कर दिया है।
इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता दीपु दास ने खुलकर न्याय की मांग उठाई है। उनका कहना है कि हिंसा किसी भी वजह से हो, लेकिन अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो और हिंदू समुदाय को सुरक्षा का भरोसा दिया जाए। उनका आरोप है कि कई मामलों में पुलिस समय पर नहीं पहुंची, जिससे हालात और बिगड़ गए।
राजनीतिक रूप से भी माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है। तारिक रहमान की संभावित वापसी को लेकर चर्चाएं तेज हैं और इसी के बीच विरोध-प्रदर्शन उग्र हो गए हैं। जानकारों का मानना है कि राजनीतिक अस्थिरता का असर सीधे आम लोगों पर पड़ रहा है, जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान अल्पसंख्यकों को झेलना पड़ रहा है।
ढाका में रह रहे हिंदुओं का कहना है कि वे सिर्फ शांति और सुरक्षा चाहते हैं। उनका सवाल साफ है कि जब हालात बिगड़ते हैं, तो सबसे पहले निशाना वही क्यों बनते हैं। ग्राउंड रिपोर्ट यह दिखाती है कि बांग्लादेश में हिंसा सिर्फ सियासी मुद्दा नहीं रह गई है, बल्कि यह आम लोगों के डर और असुरक्षा की कहानी बन चुकी है।