बांग्लादेश की विदेश नीति अचानक किस दिशा में मुड़ रही
बांग्लादेश की विदेश नीति अचानक किस दिशा में मुड़ रही
बांग्लादेश के मंत्री ने दावा किया कि देश को अब भारत पर अत्यधिक निर्भरता कम करनी चाहिए और नई रणनीतिक साझेदारियों की ओर देखना चाहिए। यह बयान ऐसे समय में आया है जब चीन लंबे समय से बांग्लादेश में इंफ्रास्ट्रक्चर और निवेश के जरिए अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। दूसरी ओर, पाकिस्तान भी राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर बांग्लादेश से दूरी घटाने की कोशिश कर रहा है। तीनों देशों के बीच बढ़ते संपर्कों ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या एक नया क्षेत्रीय गुट तैयार हो रहा है।
दक्षिण एशिया में भारत का प्रभाव लंबे समय से स्थिर रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में बांग्लादेश की राजनीति और सत्ता परिवर्तन ने समीकरण बदल दिए हैं। नया नेतृत्व भारत के साथ मजबूत रिश्तों को जारी रखने की बात तो करता है, लेकिन उसके बयानों और कदमों ने एक तरह की असहजता जरूर पैदा की है। चीन इसे एक मौके की तरह देख रहा है। उसकी इंडो-पैसिफिक रणनीति में बांग्लादेश की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है, और पाकिस्तान इस नई धुरी को भारत के खिलाफ कूटनीतिक लाभ के रूप में भुनाना चाहता है।
हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि बांग्लादेश के लिए भारत को पूरी तरह छोड़ना आसान नहीं है। व्यापार, सुरक्षा, ऊर्जा और सीमा प्रबंधन जैसे कई मुद्दों पर ढाका की सबसे बड़ी जरूरतें भारत ही पूरा करता है। इसके बावजूद, लगातार बदलते अंतरराष्ट्रीय माहौल और आर्थिक दबावों ने बांग्लादेश को अपने विकल्प बढ़ाने पर मजबूर कर दिया है। यही वजह है कि वह नई साझेदारियों को लेकर खुलकर बयान दे रहा है।
यह पूरा मामला सिर्फ कूटनीति नहीं, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति संतुलन से जुड़ा है। अगर चीन-पाकिस्तान-बांग्लादेश के बीच कोई मजबूत धुरी बनाई जाती है, तो इसका सीधा असर भारत की स्थिति पर पड़ेगा। लेकिन कई विश्लेषक मानते हैं कि यह गठजोड़ अभी भी अधिकतर बयानबाजी और दबाव बनाने की रणनीति है, न कि कोई ठोस राजनैतिक मोर्चा।
फिलहाल इतना तय है कि बांग्लादेश की विदेश नीति में बदलाव के संकेत साफ दिख रहे हैं और भारत को अब नई परिस्थितियों के अनुसार अपनी रणनीति तैयार करनी होगी, क्योंकि पड़ोस में चल रहा यह बदलाव आने वाले समय में पूरे क्षेत्र की राजनीति को प्रभावित कर सकता है।