पुराने लड़ाकू विमानों पर क्यों अटका पाकिस्तान का भरोसा

Updated on 2025-12-11T16:56:50+05:30

पुराने लड़ाकू विमानों पर क्यों अटका पाकिस्तान का भरोसा

पुराने लड़ाकू विमानों पर क्यों अटका पाकिस्तान का भरोसा

पाकिस्तान कई सालों से आर्थिक संकट से जूझ रहा है और रक्षा बजट भी लगातार दबाव में है। ऐसे में सेना प्रमुख जनरल मुनीर का अमेरिका के साथ F-16 फ्लीट अपडेट को लेकर आगे बढ़ना कई विश्लेषकों को चौंकाने वाला लगा। असल में यह डील किसी नए लड़ाकू विमान को खरीदने की नहीं, बल्कि पुराने F-16 विमानों की मरम्मत, अपग्रेड और मेंटेनेंस पैकेज को लेकर है। ये वही एयरक्राफ्ट हैं जिनमें से कुछ 1980 के दशक से पाकिस्तान एयर फोर्स का हिस्सा हैं।

अमेरिका की ओर से पेश किया गया पैकेज पाकिस्तान को भरोसा दिलाता है कि उसके F-16 आगे भी ऑपरेशनल रहेंगे। लेकिन आलोचक इसे अमेरिका की एक “सॉफ्ट कूटनीति” बताते हैं, जहां वॉशिंगटन बिना नए हथियार दिए सिर्फ सर्विसिंग, टेक्निकल सपोर्ट और स्पेयर पार्ट्स के नाम पर मोटी रकम हासिल कर रहा है। पाकिस्तान, जो वित्तीय रूप से पहले ही कमजोर है, इन पैकेजों के लिए बड़ा भुगतान करने को मजबूर नजर आ रहा है।

इस फैसले को लेकर पाकिस्तान के अंदर भी बहस है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के आधुनिक राफेल और तेजी से बढ़ती वायु शक्ति के सामने पुराने F-16 अब रणनीतिक बढ़त नहीं दे सकते। दूसरी ओर, अमेरिका नए जेट देने से बचता है ताकि दक्षिण एशिया में सैन्य संतुलन भारत के पक्ष में ही बना रहे। ऐसे में पाकिस्तान के पास बचे हुए विकल्प सीमित हैं।

नई डील के बाद पाकिस्तान को मिलने वाला असली फायदा सिर्फ इतना है कि उसकी मौजूदा F-16 स्क्वाड्रन कुछ और साल उड़ान भर सकेगी। लेकिन इसके बदले चुकाई जा रही भारी कीमत ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि यह समझौता मजबूरी का है या रणनीति का। जनरल मुनीर इसे पाकिस्तान की जरूरत बताते हैं, लेकिन अमेरिका की दिलचस्पी ज्यादा एक ऐसे ग्राहक में दिखती है जो हर अपग्रेड पर निर्भर और भुगतान करने के लिए तैयार है।

कुल मिलाकर, यह साझेदारी दोनों देशों के लिए फायदे का सौदा बताई जा रही है, लेकिन असल तस्वीर यही दिखाती है कि पाकिस्तान एक बार फिर पुराने हथियारों के सहारे भविष्य सुरक्षित करने की कोशिश कर रहा है, और अमेरिका इस स्थिति का पूरा लाभ उठा रहा है।