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गुजरात के अमरेली में दलित युवक की पिटाई से मौत, ‘बेटा’ कहने पर भड़के दुकानदार ने साथियों संग किया हमला

गुजरात के अमरेली में दलित युवक की पिटाई से मौत, ‘बेटा’ कहने पर भड़के दुकानदार ने साथियों संग किया हमला

Last Updated May - 27 - 2025, 10:33 AM | Source : Fela News

एक दलित युवक ने जब सम्मान से दुकानदार के बेटे को ‘बेटा’ कहा, तो बात इतनी बढ़ गई कि उसकी बेरहमी से पिटाई की गई और बाद में उसकी मौत हो गई।
गुजरात के अमरेली में दलित युवक की पिटाई से मौत
गुजरात के अमरेली में दलित युवक की पिटाई से मौत

 गुजरात के अमरेली ज़िले से दलितों के खिलाफ हिंसा का एक और शर्मनाक मामला सामने आया है।  Nilesh Rathod नामक एक युवा दलित युवक की मौत उस समय हो गई जब उसे कुछ लोगों ने मिलकर सिर्फ इसलिए बेरहमी से पीट दिया क्योंकि उसने एक दुकानदार के बेटे को ‘बेटा’ कह दिया था। यह घटना एक स्नैक की दुकान पर हुई, जहां निलेश ने मदद के भाव से दुकानदार के नाबालिग बेटे को ‘बेटा’ कहकर संबोधित किया।

इस छोटी-सी बात पर दुकानदार को जातीय रूप से आपत्ति हुई और उसने निलेश को लोहे के करछुल से मारने की कोशिश की। यह जानकारी पुलिस को शिकायतकर्ता लालजी चौहान ने दी, जो खुद भी हमले में घायल हुए। जब चौहान बीच-बचाव करने पहुंचे तो उन्हें भी डंडों से पीटा गया। देखते ही देखते और लोग भी वहां पहुंच गए और निलेश व उसके साथियों पर लाठी-डंडों और दरांती जैसे हथियारों से हमला कर दिया। इस दौरान जातिगत गालियां भी दी गईं।

पीड़ित किसी तरह वहां से भागे, लेकिन हमलावरों ने उनका पीछा किया और जातिसूचक टिप्पणियों के साथ हमला जारी रखा। अंत में एक बुजुर्ग राहगीर के हस्तक्षेप से हिंसा थमी। निलेश को गंभीर हालत में भावनगर सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई।

शुरुआत में पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया था, लेकिन निलेश की मौत के बाद इसमें हत्या और हत्या के प्रयास की धाराएं जोड़ दी गईं। साथ ही, अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धाराएं भी लगाई गई हैं।

अब तक पुलिस ने 9 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है और दो अन्य की तलाश जारी है। इस घटना को लेकर स्थानीय स्तर पर काफी आक्रोश है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक नेताओं ने दोषियों को कड़ी सज़ा देने, पीड़ित परिवार को उचित मुआवज़ा देने और मामले की त्वरित सुनवाई की मांग की है।

यह घटना एक बार फिर दिखाती है कि जातीय भेदभाव आज भी हमारे समाज में कितनी गहराई तक मौजूद है—जहां एक सम्मानजनक शब्द भी दलितों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।

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