Last Updated Apr - 07 - 2025, 03:10 PM | Source : Fela News
'केसरी 2' मूवी के ट्रेलर में जलियांवाला बाग की त्रासदी को देख 95 वर्षीय बुजुर्ग की आंखें भर आईं, बीते दर्दनाक लम्हों की यादें ताज़ा हो गईं।
13 अप्रैल 1919 – वो तारीख जिसने भारत की आज़ादी की लड़ाई को झकझोर दिया। जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार को हम सबने किताबों और भाषणों में सुना है। लेकिन अब, एक नई फिल्म इस घटना को बड़े पर्दे पर दिखाने जा रही है — और उसके साथ ही उठने लगे हैं सवाल, क्या सिनेमा इतिहास के जख्मों को सही तरीके से दिखा पाएगा?
जलियांवाला बाग: सिर्फ एक गोलीकांड नहीं, पीढ़ियों का दर्द
घटना के बाद भी खत्म नहीं हुआ था दर्द, कई परिवार आज भी उस घटना की छाया में जीते हैं।
एक 95 वर्षीय बुज़ुर्ग, जिनके पूर्वज उस हत्याकांड के शिकार हुए थे, बताते हैं कि "हमारे लिए जलियांवाला बाग उस दिन खत्म नहीं हुआ, वो हर साल अप्रैल में फिर से जी उठता है।" उनका अनुभव आज भी रूह कंपा देता है — दादी की चुप्पी, पिता की अंग्रेज़ी से दूरी और घर में टंगा खून से सना शॉल... ये सब इतिहास की अनकही विरासत बन चुके हैं।
अब आ रही है फिल्म, और साथ में विवाद भी
जलियांवाला बाग की कहानी पर आधारित नई फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर बहस तेज।
जलियांवाला बाग पर आधारित आने वाली फिल्म को लेकर लोगों की भावनाएं बंटी हुई हैं। कुछ का कहना है कि यह फिल्म नई पीढ़ी को उस भयानक इतिहास से जोड़ने का एक जरिया बन सकती है। वहीं, कुछ परिवारों और इतिहासकारों का आरोप है कि फिल्म में तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा गया है, और इस घटना को "ड्रामा" की तरह पेश किया जा रहा है।
क्या कला को इतनी छूट मिलनी चाहिए?
जहां कुछ इसे क्रिएटिव फ्रीडम कह रहे हैं, वहीं कुछ इसे शहीदों का अपमान मानते हैं।
विवाद इस बात पर भी है कि क्या फिल्मकारों को इतनी आज़ादी होनी चाहिए कि वे किसी ऐतिहासिक त्रासदी को मनोरंजन की तरह पेश करें?
क्या सिनेमा उन घावों को कुरेद सकता है जिनसे आज भी कुछ परिवार उबर नहीं पाए हैं?
एक इस्तीफ़ा जिसने बदल दी थी कहानी
सर सी. शंकरन नायर का इस्तीफ़ा बना था आज़ादी के आंदोलन की चिंगारी।
इस हत्याकांड के बाद कांग्रेस नेता और वायसराय काउंसिल के सदस्य सर सी. शंकरन नायर ने विरोध में इस्तीफ़ा दिया। उनका यह कदम सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि नैतिक विद्रोह भी था। यही किरदार अब फिल्म में भी दिखाया गया है, लेकिन परिवारवालों का कहना है कि उनकी छवि को स्क्रीन पर ठीक से नहीं दिखाया गया।
इतिहास बनाम हकीकत की लड़ाई
जलियांवाला बाग की विरासत कोई स्क्रिप्ट नहीं — ये ज़िंदा यादें हैं।
जलियांवाला बाग सिर्फ एक तारीख या लोकेशन नहीं, बल्कि उन जख्मों की पहचान है जो आज भी दिलों में ताज़ा हैं। जहां एक ओर फिल्म इस घटना को फिर से लोगों के बीच ला रही है, वहीं यह भी जरूरी है कि इतिहास का सम्मान बना रहे और सच्चाई से समझौता न हो।
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