Last Updated Nov - 24 - 2025, 04:47 PM | Source : Fela News
धर्मेंद्र के बचपन की असली कहानी उनके साधारण गांव की जिंदगी, संघर्ष और परिवार की जिम्मेदारियों में छिपी थी। छोटी-सी उम्र में कड़े हालातों ने उन्हें मजबूत बनाया औ
धर्मेंद्र के निधन के बाद उनके चाहने वाले एक बार फिर उनकी जड़ों की ओर लौट आए हैं, लुधियाना के वह गलियां, जहां ‘पंजाब दे पुत्तर’ धरम सिंह देओल ने अपना बचपन बिताया था। पर्दे पर सुपरस्टार बनने से पहले उनका जीवन बेहद साधारण था, लेकिन इन्हीं सादगी भरे दिनों ने उन्हें मजबूत और जमीन से जुड़ा इंसान बनाया।
लुधियाना के सहनेवाल गांव में धर्मेंद्र का पुश्तैनी घर आज भी मौजूद है। मिट्टी से बना यह पुराना घर किसी फ़िल्मी दृश्य जैसा लगता है , साधारण, शांत और बेहद देसी। लोग बताते हैं कि बचपन में धर्मेंद्र बेहद शर्मीले लेकिन दिल के साफ थे। गांव के खेतों में खेलना, दोस्तों के साथ दौड़ना और गांव की गलियों में साइकिल चलाना उनका रोज़ का हिस्सा था। उनके पिता स्कूल में हेडमास्टर थे, इसलिए पढ़ाई और अनुशासन दोनों उनके परिवार के अहम हिस्से थे।
धर्मेंद्र की शुरुआती पढ़ाई सहनेवाल के जिस स्कूल में हुई, वहां आज भी उनकी तस्वीरें संभालकर रखी गई हैं। स्कूल के पुराने शिक्षक बताते हैं कि धरम पढ़ाई में बहुत तेज़ नहीं थे, लेकिन बेहद मेहनती और ईमानदार थे। फिल्मों का शौक उन्हें बचपन से था, लेकिन तब किसी ने नहीं सोचा था कि यही लड़का आगे चलकर देश का सबसे बड़ा सितारा बन जाएगा।
युवावस्था में धर्मेंद्र अक्सर लुधियाना शहर जाते थे, जहां वे सिनेमा हॉल में दिल लगाते थे। फिल्मों की दुनिया उन्हें अपनी ओर खींचती थी। जब उन्होंने एक पत्रिका द्वारा आयोजित टैलेंट कॉन्टेस्ट जीता, तब पहली बार उनके सपनों को असली दिशा मिली। लुधियाना से मुंबई का सफ़र आसान नहीं था, लेकिन गांव में बिताया गया संघर्ष भरा जीवन उन्हें हर मुश्किल से लड़ना सिखा चुका था।
धर्मेंद्र जब सुपरस्टार बने, तो भी सहनेवाल गांव से उनका जुड़ाव कभी कमजोर नहीं हुआ। गांव के बुज़ुर्ग बताते हैं कि वे जब भी पंजाब आते, बिना किसी दिखावे के अपने पुराने घर पहुंच जाते थे। लोगों से गले मिलते, वही देसी खाना खाते और कई बार खेतों में भी घूमते नजर आते।
आज जब धर्मेंद्र इस दुनिया में नहीं हैं, सहनेवाल गांव में एक अजीब-सी खामोशी पसरी है। उनके बचपन का घर, उनके कदमों की आहट, पुराने स्कूल की दीवारें, सब कुछ जैसे उन्हें याद कर रहा है। धरम पाजी भले ही चले गए हों, लेकिन पंजाब की मिट्टी में उनकी यादें हमेशा जिंदा रहेंगी।