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जनगणना 2027 के साथ होगी जातिगत गणना, सांभर झील की स्थिति चिंताजनक

जनगणना 2027 के साथ होगी जातिगत गणना, सांभर झील की स्थिति चिंताजनक

Last Updated Jun - 06 - 2025, 11:03 AM | Source : Fela News

गृह मंत्रालय ने जनगणना 2027 की तारीख तय की, वहीं सांभर झील में पक्षियों की बढ़ती संख्या के बावजूद पर्यावरणीय संकट गहराया।
जनगणना 2027 के साथ होगी जातिगत गणना
जनगणना 2027 के साथ होगी जातिगत गणना

गृह मंत्रालय (MHA) ने घोषणा की है कि भारत में अगली जनगणना वर्ष 2027 में दो चरणों में कराई जाएगी, जिसमें जातिगत गणना भी शामिल होगी। जनगणना 2027 के लिए संदर्भ तिथि 1 मार्च 2027 की मध्यरात्रि (00:00 बजे) होगी। हालांकि केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख और जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बर्फीले क्षेत्रों में यह तिथि 1 अक्टूबर 2026 निर्धारित की गई है। इस निर्णय से संबंधित अधिसूचना 16 जून 2025 को आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित की जाएगी, जो जनगणना अधिनियम 1948 की धारा 3 के तहत किया जाएगा।

वहीं दूसरी ओर, राजस्थान की सांभर झील को लेकर एक बड़ा पर्यावरणीय संकट सामने आया है। हाल ही में हुई पक्षी गणना में उत्साहजनक आंकड़े जरूर सामने आए, लेकिन झील की पारिस्थितिकी संतुलन पर गंभीर खतरे भी उजागर हुए हैं।

वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि झील की सीमाओं का स्पष्ट निर्धारण न होने से अतिक्रमण बढ़ा है और झील का वास्तविक क्षेत्रफल घट रहा है। साथ ही, अवैध नमक खनन माफिया और हिंदुस्तान साल्ट/सांभर साल्ट जैसी कंपनियों की अनियमित गतिविधियां, जैसे कि अवैध बोरिंग और गड्ढे खोदना, इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रही हैं।

नावा क्षेत्र में बिजली की खुली वायरिंग और अव्यवस्थित केबलिंग प्रवासी पक्षियों के लिए घातक साबित हो रही हैं। इसके अलावा, भारी मशीनों से उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण और अनियंत्रित पर्यटन भी इन पक्षियों की शांति में बाधा डाल रहा है।

अधिकारी ने यह भी बताया कि इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे की भारी कमी है। पशु चिकित्सा सहायता, बचाव केंद्र, पक्षियों की स्वास्थ्य जांच प्रयोगशालाएं और पूर्ण रूप से सुसज्जित पशु अस्पतालों का अभाव इस संकट को और गंभीर बना देता है—खासकर तब, जब पक्षियों की सामूहिक मौतें होती हैं।

इन सारी चुनौतियों के बीच, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अब भी समय रहते प्रभावी संरक्षण उपाय नहीं किए गए, तो सांभर झील न केवल प्रवासी पक्षियों के लिए, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर खतरे में बदल सकती है।

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