Last Updated Nov - 07 - 2025, 01:38 PM | Source : Fela News
Bhagavad Gita: गीता के अनुसार, अधर्म के रास्ते पर चलने वाले लोग सही और गलत में फर्क नहीं कर पाते. श्रीकृष्ण बताते हैं कि धर्म सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि जीवन जीने
Bhagavad Gita: भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद् गीता के अध्याय 16, श्लोक 7 में बताया है कि इंसान में दो तरह की प्रवृत्तियाँ होती हैं — दैवी और आसुरी। आसुरी स्वभाव वाले लोग नहीं समझ पाते कि जीवन में क्या सही है और क्या गलत। उनके अंदर न शुद्धता होती है, न अच्छे संस्कार और न ही सच बोलने की आदत। ऐसे लोग धर्म के रास्ते से भटककर सिर्फ भौतिक सुख और स्वार्थ में उलझ जाते हैं।
धर्म जीवन जीने की पद्धति है
श्रीकृष्ण कहते हैं कि धर्म मनुष्य को शांति, संतुलन और समाज के भले की ओर ले जाता है, जबकि अधर्म उसे अंधकार, हिंसा और असत्य की ओर धकेल देता है। गीता के अनुसार, धर्म सिर्फ पूजा-पाठ नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है जो समाज में मर्यादा और व्यवस्था बनाए रखती है। जब यह मर्यादा टूटती है, तो व्यक्ति अहंकार और वासना में फंसकर सही-गलत की समझ खो देता है।
आज के समय में गीता का संदेश
श्रीकृष्ण का उपदेश आज भी उतना ही जरूरी है। आज कई लोग मानते हैं कि हर किसी का सत्य अलग होता है, लेकिन श्रीकृष्ण चेताते हैं कि ऐसा सोचने से समाज में भ्रम और नैतिक गिरावट बढ़ती है। अगर हर कोई अपनी सुविधा से सच गढ़ेगा, तो न्याय और नियम खत्म हो जाएंगे। श्रीकृष्ण कहते हैं कि सत्य सापेक्ष नहीं, बल्कि एक ही होता है — और वही धर्म का आधार है।
असुरी प्रवृत्ति और उसका परिणाम
श्रीकृष्ण बताते हैं कि आसुरी स्वभाव वाले लोग अपने कर्मों के नतीजों पर विचार नहीं करते। वे सच और अच्छाई को अपने स्वार्थ के हिसाब से बदलते हैं। ऐसे लोग अपने अहंकार में अंधे होकर समाज के पतन का कारण बनते हैं।
धर्म और सदाचार ही स्थायी हैं
भगवान श्रीकृष्ण समझाते हैं कि जीवन में धर्म, सत्य और सदाचार ही स्थायी मूल्य हैं। जो इनसे दूर होता है, वह धीरे-धीरे विनाश की ओर बढ़ता है। आसुरी स्वभाव वाले लोग शुद्धता, सत्य और आचरण की मर्यादा सब खो देते हैं।
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