Last Updated Nov - 05 - 2025, 12:22 PM | Source : Fela News
रिलीज से पहले इमरान हाशमी और यामी गौतम की फिल्म ‘हक’ कानूनी मुसीबत में आ गई है। शाह बानो के परिवार ने कोर्ट से फिल्म की रिलीज रोकने की मांग की है।
रिलीज़ से कुछ दिन पहले इमरान हाशमी और यामी गौतम की फिल्म ‘हक’ विवादों में फंस गई है। यह फिल्म शाह बानो के केस पर आधारित है, लेकिन उनके परिवार ने आरोप लगाया है कि फिल्म उनकी निजता का उल्लंघन करती है और बिना अनुमति के बनाई गई है। शाह बानो की पोती ने फिल्म की रिलीज़ रोकने के लिए अदालत में याचिका दायर की है।
शाह बानो की बेटी कोर्ट पहुंचीं
शाह बानो की बेटी सिद्दीका बेगम ने एमपी हाई कोर्ट, इंदौर में फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग की है। फिल्म 7 नवंबर को रिलीज़ होनी है। सिद्दीका के वकील तौसीफ वारसी का कहना है कि मेकर्स ने शाह बानो के नाम और कहानी का इस्तेमाल परिवार की मंजूरी के बिना किया।
“यह निजता का उल्लंघन है”
वकील वारसी ने बताया कि यह फिल्म एम.ए. खान बनाम शाह बानो बेगम केस पर आधारित है, जो भारत का ऐतिहासिक मुकदमा था। इसमें एक मुस्लिम महिला ने भरण-पोषण के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी थी। वारसी ने कहा कि किसी के निजी जीवन पर फिल्म बनाने से पहले उसकी सहमति लेना जरूरी है।
परिवार ने लगाए तोड़-मरोड़ के आरोप
शाह बानो के पोते जुबैर अहमद खान ने कहा कि जब टीज़र आया तो उन्हें पता चला कि फिल्म उनकी दादी पर है। उन्होंने दावा किया कि इसमें कई तथ्य गलत तरीके से दिखाए गए हैं, जिससे लोगों को भ्रम हो सकता है कि यह असली कहानी है।
फिल्म मेकर्स का पक्ष
फिल्म निर्माताओं ने कहा कि यह एक फिक्शनल कहानी है, जिसमें घटनाओं को नाटकीय रूप से दिखाया गया है। मेकर्स के वकील अजय बागड़िया ने बताया कि फिल्म के डिस्क्लेमर में साफ लिखा है कि यह कहानी 1985 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले और ‘बानो, भारत की बेटी’ नामक किताब से प्रेरित है, लेकिन सच्ची घटनाओं पर आधारित नहीं है।
पहले भी भेजा गया था लीगल नोटिस
इससे पहले, सिद्दीका बेगम ने मेकर्स को कानूनी नोटिस भेजकर फिल्म के प्रचार, पब्लिकेशन और रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग की थी।
फिल्म ‘हक’ के बारे में
सुपर्ण एस. वर्मा के निर्देशन में बनी यह फिल्म 1985 के शाह बानो केस पर आधारित है, जिसने भारत में महिलाओं के अधिकारों और भरण-पोषण कानूनों को नई दिशा दी थी। 1978 में 62 वर्षीय शाह बानो ने अपने पति मोहम्मद अहमद खान से गुजारा भत्ता मांगते हुए केस दर्ज कराया था। 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन अगले साल राजीव गांधी सरकार ने एक नया कानून बनाकर उस फैसले को रद्द कर दिया था।
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