Last Updated Jun - 21 - 2025, 11:24 AM | Source : Fela News
जब योग की शांति सुरों की साधना से मिलती है, तो मन, शरीर और आत्मा—तीनों का संतुलन बनता है। शास्त्रीय संगीत की धुनें ध्यान को गहरा करती हैं, तनाव कम करती हैं और श
21 जून को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस और विश्व संगीत दिवस एक साथ मना रही है। इस खास मौके पर आज तक की रिपोर्ट ने एक अनोखा पहलू सामने रखा है—जहां योग और संगीत, दोनों न सिर्फ आत्मा की साधना हैं, बल्कि शारीरिक व्यायाम का भी ज़रिया बन सकते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, सात सुरों की साधना (सा, रे, ग, म, प, ध, नि) में भी शरीर के विभिन्न अंगों की गति और संतुलन शामिल होता है, जिससे यह एक तरह का ‘संगीत योग’ बन जाता है। सुरों को सही लय और गहराई से साधने के लिए गायक का शरीर, सांस, स्वर और ध्यान—all एक साथ काम करते हैं।
कैसे संगीत भी बन जाता है एक आसन?
श्वास नियंत्रण (Breath Control) – सुर लगाने के लिए फेफड़ों और पेट से सांसों का संतुलन जरूरी होता है, जो प्राणायाम के अभ्यास जैसा ही है।
आवाज़ का कंपन (Vibration Therapy) – सुरों के कंपन शरीर के भीतर ऊर्जा के केंद्रों (चक्रों) को सक्रिय करते हैं।
शारीरिक मुद्रा (Posture) – संगीत की सही साधना में रीढ़ सीधी, छाती खुली और मन एकाग्र होता है—यह ठीक वैसे ही होता है जैसे ध्यान या ध्यानात्मक योग में।
भाव और मानसिक संतुलन – रागों का अभ्यास मन को शांत करता है, तनाव कम करता है और मानसिक स्पष्टता लाता है।
योग और संगीत: जब दोनों साधनाएं एक हो जाएं
रिपोर्ट में विशेषज्ञों का मानना है कि जब संगीत में शरीर, मन और आत्मा की भागीदारी हो, तो वह भी योग का ही एक रूप बन जाता है। यानी, संगीत केवल कानों का आनंद नहीं, बल्कि पूरे शरीर के लिए एक ‘मेडिटेटिव मूवमेंट’ है।
इस विश्व योग दिवस और संगीत दिवस पर यह संदेश और भी गहरा हो जाता है—चाहे योग करें या रियाज़, दोनों ही शरीर और मन की साधना हैं।
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