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राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट की फटकार: "अगर आप सच्चे भारतीय होते…" चीन पर दिए बयान पर नाराज़गी

राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट की फटकार: "अगर आप सच्चे भारतीय होते…" चीन पर दिए बयान पर नाराज़गी

Last Updated Aug - 04 - 2025, 04:20 PM | Source : Fela News

चीन पर दिए गए विवादित बयान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह बयान राष्ट्रहित के खिलाफ और गैर-जिम्मेदाराना है।
राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट की फटकार
राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट की फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के उस दावे को कठोर चेतावनी देते हुए खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने चीन पर भारत की 2,000 वर्ग किलोमीटर ज़मीन हड़पने का आरोप लगाया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि “एक सच्चे भारतीय को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए” और इस बीच मानहानि संबंधी मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी गई है।  

बयान में क्या कहा था: राहुल गांधी ने दिसंबर 2022 में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान दावा किया था कि चीन ने पूर्व में भारतीय सीमा के भीतर लगभग 2,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर क़ब्ज़ा किया था। उन्होंने कहा कि पूर्व सेना अधिकारियों ने उन्हें यह जानकारी दी थी और अर्ज किया कि इस पर संसद में सवाल उठना चाहिए था।  

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया: कोर्ट ने पूछा, "आपको कैसे पता कि चीन ने ये क्षेत्र हड़प लिया?" और बताया कि यदि आप सच्चे भारतीय होते तो इस तरह की बात सोशल मीडिया पर नहीं करते। कोर्ट ने यह भी पूछा कि सांसद होने के नाते आप यह शिकायत संसद में क्यों नहीं उठाते?  

सलाह दी गई कि जनता या विपक्ष के नेता को संवेदनशील राष्ट्रीय विषयों पर जिम्मेदारी के साथ बोलना चाहिए, खासकर संसद जैसे मंच पर, बजाय सोशल मीडिया पोस्ट के।  

मुकदमा स्थगित, लेकिन फटकार जारी है:

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मानहानि मामले की सुनवाई अस्थायी रूप से रोकी है और तीन सप्ताह के भीतर नई तारीख तय की है, उसने आरोप के गंभीर राजनीतिक और संवैधानिक पहलुओं को लेकर राहुल गांधी को कड़ी फटकार दी है। अदालत ने सभी पक्षों को नोटिस जारी किया है।  

इस घटना ने दर्शाया है कि आक्रामक बयानबाज़ी राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर नया राजनीतिक रंग चढ़ा सकती है। यह मामला राहुल गांधी के बयान की विश्वसनीयता, विपक्ष की भूमिका और सांसदों की जिम्मेदारी जैसे सवाल खड़े करता है।

इस फटकार से यह संकेत मिलता है कि सार्वजनिक वक्तव्य केवल राजनीतिक हथियार नहीं, बल्कि संवेदनशील राष्ट्रीय मामलों में जिम्मेदार उपयोग का विषय भी हैं — खासकर जब वे वैश्विक तनाव और सीमा विवाद से जुड़े हों।

 

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