Last Updated Jun - 30 - 2025, 04:54 PM | Source : Fela News
दशकों की तपस्या, गौरक्षा आंदोलन और वेद आधारित राष्ट्र जागरण की दिशा में शंकराचार्य जी का ऐतिहासिक संकल्प
पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने 83वें प्राकट्य उत्सव पर ऐलान किया कि “भारत शीघ्र ही हिंदू राष्ट्र बनेगा।” इस ऐतिहासिक घोषणा के दौरान देश और विदेश के कई प्रमुख अतिथि उपस्थित थे—मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, कई हिंदू राष्ट्रों के राजदूत और अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर के साक्षी बने।
शंकराचार्य जी ने कहा कि यह परिवर्तन न केवल समय की मांग है, बल्कि शास्त्रसम्मत भी है। उनके अनुसार, भारत का वैश्विक आध्यात्मिक नेतृत्व का पुनः उदय अवश्यंभावी है और आने वाला विश्व व्यवस्था परिवर्तन भारत को केंद्र में रखकर होगा।
उनके पुराने भाषणों—विशेषकर 2018, 2021 और 2022 के—आज फिर से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिनमें उन्होंने विश्व युद्ध, भारत की रणनीतिक भूमिका और पाकिस्तान, नेपाल व चीन-शासित क्षेत्रों के पुनः भारत में एकीकरण की भविष्यवाणी की थी।
गौरक्षा के प्रति उनका समर्पण किसी परिचय का मोहताज नहीं। 1966 में वे युवा साधक के रूप में करपात्री जी महाराज के नेतृत्व में चलाए गए गौरक्षा आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए और 55 दिन तिहाड़ जेल में रहे। बाद में इसी विषय पर उन्होंने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया—गौवध पूर्ण रूप से प्रतिबंधित न होने तक वे पुरी पीठ के सिंहासन, छत्र और छड़ी का त्याग करेंगे। उनका यह संकल्प उनके पूूर्वाचार्य, शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ जी महाराज की परंपरा का जीवंत उदाहरण है।
धर्म संघ के प्रमुख के रूप में उन्होंने देशभर में शास्त्रार्थ आधारित धर्म सभाओं की परंपरा को पुनर्जीवित किया है। IIT, IIM, ISRO, DRDO और BARC जैसे संस्थानों में उनके व्याख्यान इस बात का प्रमाण हैं कि वेद और शास्त्र आज भी समसामयिक वैज्ञानिक विषयों के साथ प्रासंगिक हैं।
1974 में हरिद्वार में करपात्री जी महाराज से संन्यास दीक्षा प्राप्त करने के बाद वे एक दंडी संन्यासी के रूप में कठोर तप और शास्त्राध्ययन में लीन रहे। कहा जाता है कि 1990 में मेरठ के जिमखाना मैदान में “जय श्री राम” का उद्घोष सबसे पहले उन्होंने ही किया था—जो आज राष्ट्रव्यापी चेतना का प्रतीक बन चुका है।
वर्ष में 250 से अधिक दिन भारतवर्ष की यात्रा करते हुए, वे ‘राष्ट्र उत्कर्ष अभियान’ का नेतृत्व कर रहे हैं, जो शास्त्र, विज्ञान और राष्ट्रोत्थान पर आधारित है। मीडिया से दूर रहकर भी उनका कार्य राष्ट्र की आत्मा को जाग्रत करने में निरंतर लगा हुआ है—एक दृढ़ संकल्प, मौन तप और शास्त्र सम्मत मार्ग के साथ।